“समुद्रमंथन”
एक समय की बात है जब स्वर्ग के राजा देवराज इंद्र को अपने आप पर बहुत घमंड आ गया था। तब देव ऋषि नारद मुनि ने एक षड्यंत्र रचा और उनके घमंड को तोड़ने की तरकीब सोची। फिर वह ऋषि दुर्वासा को देवराज इंद्र के पास लेकर गए| ऋषि दुर्वासा एक अत्यंत ही क्रोधित ऋषि थे। जो कभी भी क्रोध में आकर श्राप दे दिया करते थे । इसी कारण देवराज के कटु वचन सुनकर ऋषि दुर्वासा को क्रोध आ गया और उन्होंने उनको यह श्राप दिया कि पूरा संसार तीनो लोक लक्ष्मी से वंचित हो जाएंगे और पूरे संसार में अंधकार छा जाएगा और कुछ ही समय बाद असुरों के राजा बलि ने भी स्वर्ग लोक पर आक्रमण कर दिया और वहां से देवताओं का अमृत कलश चुरा लिया इसी कारण देवताओं के राजा इंद्र और बलि में घमासान युद्ध हुआ जिस कारण अमृत कलश छीना- झपटी में समुद्र में गिर गया।
इस कारण देवताओं की सारी शक्तियां खत्म हो गई और माता लक्ष्मी भी अंतर्ध्यान हो गई। जिसके बाद स्वर्ग लोक के देवता भगवान शिव के पास गए और उनसे समस्या का समाधान मांगा भगवान शिव ने यह समाधान दिया कि सारी शक्तियों को पुनः धारण करने के लिए समुद्र मंथन कराना पड़ेगा। जो कि चिरकाल तक जाना जाएगा और असुरों और देवताओं के एक होने के पश्चात ही हो सकेगा उसके बाद देवता और असुर दोनों संगठित हुए।
जिस में मंदार पर्वत का उपयोग किया। भगवान विष्णु ने कच्छप अवतार धारण कर उनके ऊपर मंदार पर्वत उठाने का कर्तव्य निभाया। महादेव के वासुकी नाग ने रस्सी की प्रतिमा निभाई। उसके बाद समुद्र मंथन से निकले 14 रत्न
समुद्र मंथन से निकले १४ रत्न
1:-हलाहल विष
हलाहल विष सबसे पहले समुंद्र मंथन से निकला और त्रिकालदर्शी त्रिलोकीनाथ महादेव ने ग्रहण किया। जिसके ग्रहण करते ही महादेव का गला नीला पड़ गया तब से वह नीलकंठ महादेव कहलाये और उस विष को रोकने के लिए माता आदिशक्ति जो की भगवन शिव की अर्द्धांगिनी हे उन्होने आपनी शक्ति से उस विष को शिव जी के गले में रोक लिया
2:- कामधेनु गाय
कामधेनु गाय एक दिव्य गाय थी जिसे देवताओं के राजा देवराज इंद्र को सौंप दिया गया
3:- उच्च: श्रवॉ घोड़ा
अत्यंत ही बलशाली घोड़ा देवताओं को सौंप दिया गया।
4:- एरावत हाथी
यह हाथी देवराज इंद्र का वाहन था| यह बहुत ही बलशाली और दिव्य था| इसे देवराज इंद्र को फिर सौप दिया गया।
5:- कौस्तुभ मणि
समुद्र मंथन से निकली गई पांचवी कौस्तुभ मणि श्री भगवान विष्णु को सौंपी गई जिसे भगवान विष्णु ने अपने गले पर धारण किया।
6:- कल्पवृक्ष
कल्पवृक्ष एक ऐसा दिव्य वृक्ष था जो इच्छा पूर्ण करता था| इसकी छाया में बैठकर जो भी कामना करता था। उसकी इच्छा अवश्य पूर्ण होती थी यह वृक्ष देवराज इंद्र को सौंप दिया गया जिसे देवराज इंद्र ने स्वर्ग लोक में स्थापित किया।
7:- रंभा नामक अप्सरा
रंभा नामक अप्सरा देवताओं की अप्सरा जिसे देवताओं को पुन:सौंप दिया गया।
8:- देवी लक्ष्मी
आठवीं रत्नों में निकली देवी लक्ष्मी के आगमन से पूरे संसार में उजाला हो गया और जो संसार लक्ष्मी से वंचित था लक्ष्मी के प्रकट होते ही पुन: धरती पर संतुलन स्थापित हो गया।
9:- वारुणी अर्थात मदिरा
समुद्र मंथन से निकला 9वा रतन वारुणी अर्थात मदिरा जिसे असुरों को सौंपा गया|
10:- चंद्रमा
समुद्र मंथन में से निकले 10वीं रत्न मे चंद्रमा की प्राप्ति हुई
11:- परिजात वृक्ष
यह दिव्य वृक्ष देवताओं को सौंप दिया गया
12:- पांचजन्य शंख
यह वह शंख था जिसे युद्ध मैं बजाया जाता था इस शंख से युद्ध की घोषणा की जाती थी और युद्ध का अंत।
13:- भगवान धनवंतरी
14:- अमृत
समुद्र मंथन से निकला 14 रत्न अमृत कलश जिसे भगवान विष्णु ने असुरों और देवताओं में बांटने की स्वीकृति दी| परंतु एक असुर राहु के छल कपट से उसने देवताओं का भेष बनाकर वे अमृत पीलिया| जिस कारण भगवान विष्णु ने क्रोध में आकर सुदर्शन चक्र से राहु का सर धड़ से अलग कर दिया |इसी कारण असुरों को अमृत की प्राप्ति नहीं हो पाई। और असुरों के देव गुरु शुक्राचार्य की संजीवनी विद्या भी नष्ट हो गई| पर महादेव की कृपा के कारण गुरु शुक्राचार्य की संजीवनी विद्या फिर से उन्हें प्रदान कर दी गई।
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