श्री हरि नारायण |
एक समय की बात है भगवान विष्णु ने अपने भक्त से प्रसन्न की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे वरदान मांगने को कहा भक्तों ने कहा है प्रभु मुझे सिर्फ आपका आशीर्वाद चाहिए। भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर उसके संरक्षण में अपना सुदर्शन चक्र जारी किया जिससे कि जब भी भक्तों को हानि पहुंचे गी या उसे कोई उसे मारने आएगा तो भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र उसकी सहायता में खड़ा रहेगा और उसका वध कर देगा।
भक्त एक बड़े राज्य का राजा हुआ करता था वह देवताओं की बहुत सहायता करता था देवताओं के लिए यज्ञ कराया करता था| एक बार उसने यज्ञ करवाया जिसमें सभी ऋषि यों को उसने आमंत्रित किया भोजन हेतु। ऋषि दुर्वासा अत्यंत क्रोधित शिवांश तेजस्वी ऋषि दुर्वासा जिन्हें पुराणों में श्राप देने के नाम से जाना जाता है| यह माना जाता है कि उनका श्राप संसार के हित में होता है|
इसी कारण ऋषि दुर्वासा अपने आप को बहुत ही क्रोधित और शक्तिशाली समझने लगे उनकी क्रोध अग्नि इतनी बढ़ चुकी थी कि वह किसी को माफ नहीं करते थे वह बेवजह ही क्रोध मे श्राप दिया करते थे|
अपनी शक्ति पर हंकार बढ़ जाने के कारण ऋषि दुर्वासा राजा की सभा में पहुंचे राजा ने कहा आइए भोजन ग्रहण करे| उन्होंने कहा नहीं मैं पहले अपने आप को स्नान करके और स्वच्छ करके फिर ही भोजन खा लूंगा तो ऋषि दुर्वासा से उन्होंने यह कहा की है रिसीवर जब तक आप नहीं आते तब तक यहां पर कोई भी खाना नहीं खाएगा।
फिर ऋषि दुर्वासा स्नान हेतु नदी के तट पर निकले बहुत वक्त बिता गया बहुत समय बीतता गया ऋषि दुर्वासा भोजन हेतु पधारे ही नहीं इसी कारण राजा और उनकी प्रजा ने सोचा क्यों ना ऋषि के आने से पहले ही भोजन कर लिया जाए |क्योंकि बहुत समय हो चुका था इसके बाद राजा ने सोचा कि हमें ग्रहण कर लेना चाहिए क्या पता ऋषि दुर्वासा को कोई कार्य हेतु प्रस्थान करना पड़ा हो तो उसके बाद सब ने भोजन कर लिया।
तभी एकदम से ऋषि दुर्वासा पधारे उन्हें भोजन करता देख वह अत्यंत ही क्रोधित हो गए उन्होंने अपने बालों की जटा जमीन पर फेंकी। जटा से एक राक्षस नी प्रकट हुई दुर्वासा ने उसे कहा है राक्षसी को यह आज्ञा दी कि तुम इसे खा जाओ तभी राक्षसी उन पर हमला करने जा ही रही थी। तभी भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र प्रकट हुआ और उस राक्षसी को मार गिराया।
अब वह सुदर्शन चक्र ऋषि दुर्वासा की हत्या करने उनके पीछे पीछे भागा ऋषि दुर्वासा तीनों लोगों में इधर-उधर भागने लगे उनको कोई राह नहीं सूजी तो उन्हें लगा कि ब्रह्मदेव से रक्षा ली जाए ब्रह्मा देव के पास पहुंचे उन्होंने कहा कि हे ब्रह्मदेव सुदर्शन चक्र म मेरा वध करने हेतु मेरे पीछे तत्पर है| ब्रह्मदेव ने कहा कि मैं कुछ नहीं कर सकता तुम भगवान शिव के पास जाओ फिर भगवान शिव के पास ऋषि दुर्वासा पहुंचे उनसे कहा कि हे भगवान शिव मुझे बचाइए भगवान शिव ने कहा कि मैं कुछ नहीं कर सकता यह भगवान विष्णु का सुदर्शन है| वही तुम्हारी सहायता कर सकते हैं तुम उन्हीं के पास जाओ तभी ऋषि दुर्वासा भगवान विष्णु के पास पहुंचे भगवान विष्णु के पास पहुंचते ही भगवान विष्णु ने उनसे कहा कि हे दुर्वासा तुम वजह जाने बिना ही श्राप दे दिया करते हो इसी कारण मैं भी तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर सकता अब तुम्हारी सहायता सिर्फ और सिर्फ वह मेरा भक्त ही कर सकता है जिसे मैंने सुदर्शन चक्र का संरक्षण प्रदान किया है वहीं सुदर्शन चक्र को रोक सकता है।
अब ऋषि दुर्वासा भक्त की सभा मैं पहुंचे भक्तों ने कहां कहां थे आप रिसीवर हम आपका कब से इंतजार कर रहे हैं। ऋषि दुर्वासा ने कहा कि भगवान विष्णु द्वारा प्रदान किए सुदर्शन चक्र को तुम ही रोक सकते हो तब उन्होंने सुदर्शन चक्र से आज्ञा की के सुदर्शन चक्र शांत हो जाओ मैंने ऋषि दुर्वासा को माफ कर दिया है। तभी ऋषि दुर्वासा ने उन्हें आशीर्वाद दिया सदा सुखी रहो उसके बाद रिसीवर अपनी तपस्या करने जंगलों में चलेगा।
यह कहानी हमें यह दर्शाती है कि अत्यंत गुस्सा हमेशा विनाशकारी ही सिद्ध हुआ है| भले ही आप कितने भी ताकतवर हो या ना हो गुस्सा रखने वाले का विनाश तो निश्चित ही है। यह भगवान विष्णु की ही लीला थी जो किसी ना किसी रूप में प्रकट होकर सीख सिखाते हैं|